खिले हैं गांवों में भी, नफरत के फूल धीरे-धीरे खिले हैं गांवों में भी, नफरत के फूल धीरे-धीरे
नफ़रत बो कर देखिये, उग आयेंगे शूल। नफ़रत बो कर देखिये, उग आयेंगे शूल।
भोर के उजाले में निकले उम्रदराज , चितवन में गुलमोहर को देख , उन्माद से भर आज में जीने भोर के उजाले में निकले उम्रदराज , चितवन में गुलमोहर को देख , उन्माद से भर ...
मां तुम्हारी अर्चना के फूल ,मैं कैसे चढ़ाऊँ। अति अपावन मन वचन मम, किस तरह विनती सुनाऊँ मां तुम्हारी अर्चना के फूल ,मैं कैसे चढ़ाऊँ। अति अपावन मन वचन मम, किस तरह विन...
तुम्हारे माथे पर मढ़ी लकीर हूँ मेरी उम्र पे लगी चोट का निशान मिटता नहीं, तुम्हारे माथे पर मढ़ी लकीर हूँ मेरी उम्र पे लगी चोट का निशान मिटता नहीं,